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इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करने का ऐतिहासिक कारण। (History of Prayagraj/Allahabad)

The name of Allahabad is changed to Prayagraj

हिन्दू पूजा पद्धति का पालन करने वाले बहुत से पुजारियों, साधु – संतो एवं कुछ इतिहासकारों की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करते हुए, आज से करीब दो साल पहले उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद (Allahabad) का नाम बदल कर प्रयागराज (Prayagraj) करने का फैसला लिया था। जब 2017 के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आई थी तब उन्होंने ये वादा किया था कि इलाहाबाद का नाम बहुत जल्द ही बदल दिया जाएगा। कैबिनेट से नाम बदलने की मंजूरी प्राप्त होने के तुरन्त बाद ही उस समय के तत्कालीन राज्यपाल श्री राम नाईक ने इस पर मुहर लगा दी थी। हालांकि यह फैसला अर्ध कुंभ से एक वर्ष पहले लिया गया था इसलिए आरोप – प्रत्यारोप तो लाज़मी था लेकिन योगी आदित्यनाथ के इस निर्णय ने सबको चौंका जरूर दिया था।

शहर का नाम बदलने के पीछे अनेक राजनैतिक कारण हो सकते हैं लेकिन इसके पीछे कुछ ऐतिहसिक कारण भी हैं जिसके बारे में जानना बहुत जरूरी है। इस लेख के द्वारा आज हम आपको यह बताने का पूरा प्रयत्न करेंगे कि इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करने के क्या – क्या ऐतिहासिक कारण हैं।

अकबरनामा मे प्रयाग का वर्णन

संगम नगरी और तीर्थराज के नाम से प्रसिद्ध इलाहाबाद को आज से करीब 450 साल पहले प्रयागराज के नाम से ही जाना जाता था। बादशाह अकबर के सुप्रसिद्ध राज्य इतिहासकार और अकबरनामा के रचयिता फ़ज़ल बिन मुबारक ने अपनी एक रचना में इलाहाबाद को ‘पियाग’ कह कर संबोधित किया है जिसका अर्थ ‘प्रयाग’ ही है। 1575 में जब अकबर पहली बार प्रयागराज आया तो इस शहर की खूबसूरती और हिन्दू धर्म में इसके महत्व को देख कर वह काफी प्रभावित हुआ। अकबरनामा में लिखा गया है कि, प्रयाग की खूबसूरती से प्रभावित अकबर वहा पर एक शहर बसाना चाहता था इसीलिए 1875 में अकबर ने प्रयागराज का नाम बदलकर ‘इलाहाबास’ कर दिया। ‘इलाहाबास’ का अर्थ है ‘अल्लाह का वास’, मतलब वो जगह जहाँ अल्लाह रहते हो।

हिन्दू धर्म मे प्रयागराज का महत्व

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता माना जाता है। सृष्टि का निर्माण करने से पहले ब्रह्मा जी ने एक यज्ञ किया था और उसके लिए उन्होंने प्रयागराज की धरती को चुना। प्रयाग का दो अर्थ है:-

1. ‘प्र’ का अर्थ होता है ‘पहला’ और ‘याग’ मतलब ‘यज्ञ’। जो यह बताता है कि धरती पर पहली बार यज्ञ प्रयाग में हुआ था।

2. संस्कृत मे प्रयाग का अर्थ है ‘बलिदान की जगह’। हिन्दू धर्म के अनुसार सृष्टि का निर्माण करने के बाद ब्रह्मा जी ने पहला बलिदान यही पर दिया था।

रामचरितमानस मे प्रयागराज का वर्णन

हिन्दू धर्म ग्रंथ रामचरितमानस में भी इस शहर को प्रयागराज के ही नाम से संबोधित किया गया है। प्राचीन काल मे राजाओं –  महाराजाओं का राज्याभिषेक संगम के तट पर ही किया जाता था। भगवान श्री राम जब वनवास का वचन पूरा करने के लिए वन की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो वह ऋषि भारद्वाज के आश्रम होते हुए गए थे जो प्रयागराज के संगम तट पर स्थित था। इसका उल्लेख महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण में भी किया है।

संगम नगरी और तीर्थराज के नाम से भी प्रसिद्ध है प्रयागराज

प्रयागराज को ‘तीर्थराज’ के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘तीर्थों का राजा’। पुराणों में कहा गया है कि अयोध्या, कांची, मायापुरी, मथुरा,  द्वारकापुरी, अवंतिका (उज्जैन) और काशी में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन्हें मोक्ष प्रदान करने का अधिकार तीर्थराज प्रयाग ने ही दिया है। हिन्दू धर्म के अनुसार मोक्ष देने वाले इन सातों शहर (सप्तपुरियों) को प्रयागराज की रानी माना जाता है। जिसमें काशी (वाराणसी) को प्रयागराज की पटरानी का दर्जा प्राप्त है।

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है इसलिए इसे संगम नगरी भी कहा जाता है। तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है। हिन्दू धर्म में त्रिवेणी संगम का बहुत ज्यादा महत्व है। पद्म पुराण में ऐसा कहा गया है कि जो इंसान त्रिवेणी संगम में स्नान करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ का आयोजन

सनातन धर्म में कुम्भ को महापर्व का दर्जा दिया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब स्वर्ग, धन सब कुछ कहि विलुप्त (गायब) हो गया था तब सभी देवता भगवान श्री कृष्ण के पास गए। कृष्ण भगवान ने उन देवताओं को दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए कहा। मंथन के दौरान अमृत कलश निकला जिसकी पहली बूँद प्रयागराज के पावन धरती पर जा गिरी इसीलिए प्रत्येक वर्ष कुंभ, 6 वर्षो के अंतराल मे अर्ध कुंभ, 12 वर्षो के बाद पूर्णकुंभ और 144 वर्ष पूर्ण होने के बाद महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में होता है।

इस प्रकार अंत में हम यही कह सकते हैं कि प्रयागराज नामकरण पर यदि राजनैतिक दलों के आरोप प्रत्यारोप को नज़र अंदाज़ भी कर दिया जाए तो इस पौराणिक नगर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को कमतर नहीं आंका जा सकता।

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