आय दिन कांग्रेस पार्टी के नेता कभी प्रधानमंत्री तो कभी बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख रहे है। इन पत्रों में यह सुझाव रहता है कि कोरोना की इस वैश्विक महामारी से कैसे लड़ा जाए। पत्र लिख कर दूसरों को ज्ञान देने वाले कांग्रेस के नेता यह भूल जाते है कि आज भी 3 राज्य ऐसे है जहां पर पूर्ण रूप से कांग्रेस की सरकार है। उन राज्यों में से एक है राजस्थान। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी ने राजस्थान में कुछ इस प्रकार से कोरोना का मैनेजमेंट किया है कि लोग त्राहि – त्राहि कर रहे है।
जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तब हमारे देश में कुल 16,000 वेंटिलेटर्स थे। यह बहुत हैरान कर देने वाली बात है कि करोड़ो रुपये हेल्थ बजट में खर्च करने के बाद भी हम पिछले 73 साल में सिर्फ 16,000 वेंटिलेटर्स की ही व्यवस्था कर पाए।
कहते है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, कोरोना काल में जब आवश्यकता पड़ी तो केंद्र सरकार ने PM-Cares फंड का प्रयोग कर के युद्ध स्तर पर 50,000 स्वदेशी वेंटिलेटर्स का निर्माण करवाया। यह वेंटिलेटर्स भारत की 3 बड़ी कंपनियों ने बनाया था, और महज़ 1 वर्ष के अंदर यह वेंटिलेटर्स राज्यों को वितरित कर दिया गया था ताकि वह इसका प्रयोग कर लोगों की जान बचा सके।
वेंटिलेटर्स को पहुंचा कर केंद्र सरकार ने तो अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी, लेकिन कांग्रेस शासित राज्य सरकारें आज भी केंद्र को कोसते हुए नहीं थक रहीं। राजस्थान में केंद्र सरकार द्वारा 1900 वेंटिलेटर्स भेजे गए थे, जिनमें से सिर्फ 500 का उपयोग राज्य सरकार ने अब तक किया है।
राजस्थान के स्वास्थ मंत्री श्री रघु शर्मा जी ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए वेंटिलेटर्स ख़राब थे और वह चलते-चलते अचानक से बंद हो जा रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि 300 वेंटिलेटर्स को शुरुआत में लगवाया गया था लेकिन कभी उसका सेंसर तो कभी ऑक्सीजन कंप्रेसर बंद हो जा रहा था।
मंत्री जी की बात पर जब राजनैतिक माहौल गरम होने लगा तब वेंटीलेटर बनाने वाली कंपनी ने अपने इंजीनियर्स को राजस्थान के अस्पताल भेजा। उनके पहुंचने पर पता लगा कि वेंटिलेटर्स तो ठीक है लेकिन उनको चलाने के लिए ना तो उपयुक्त सुविधाएं है और ना ही प्रशिक्षित तकनीशियन।
एक बार को यह मान भी लिया जाए कि वेंटिलेटर्स सही नहीं थे, तो फिर राजस्थान सरकार ने वेंटिलेटर्स को किराए पर क्यों दिया?
कुछ प्रख्यात मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ राजस्थान सरकार ने केंद्र द्वारा भेजे गए कुछ वेंटिलेटर्स प्राइवेट अस्पताल को किराये पर दे रखा है। इससे यह तो ज़रूर साबित हो जाता है कि वेंटिलेटर्स ख़राब नहीं है।
अब केंद्र सरकार करे तो क्या करे?
वेंटिलेटर्स भी दे दिया, ऑक्सीजन पंहुचा ही रही है, फ्रंट लाइन वर्कर्स और 45+ वालों के टीकाकरण का ज़िम्मा भी केंद्र का ही है।
इतना सब मिलने के बाद भी अगर राज्य सरकारें तकनीशियन की व्यवस्था खुद से नहीं कर पा रहीं है तो फिर उनका सरकार में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसी राज्य सरकारों को खुद केंद्र से यह अनुरोध करना चाहिए कि उनके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए, कम-से-कम लोगों की जानें तो बच सकेंगी।
बात यहीं पर ख़तम नहीं होती, राजस्थान ने इस बार सर्वाधिक वैक्सीन वेस्टेज (बर्बादी) का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया है। राज्य में 11.5 लाख वैक्सीन के डोज़ ख़राब हो गए है, जो लगभग कुल संख्या का 7% है। राजस्थान के चूरू ज़िले में सबसे अधिक 39.7%, हनुमानगढ़ में 24.6%, भरतपुर में 17.1% और कोटा में 16.7% वैक्सीन की बर्बादी हुई है।
आपको बताते चलें कि पिछले साल मार्च में कोरोना लॉकडाउन के दौरान जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल से Rs11 करोड़ के N95 मास्क भी गायब हुए थे।
पत्रों का खेल, काम में फेल
इस कोरोना काल में भी कांग्रेस के बड़े नेता राजनीति करने से पीछे नहीं हट रहे है। अभी हाल ही में प्रियंका गांधी वाड्रा जी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा था। उस पत्र में उन्होंने योगी जी से अनुरोध किया था कि वह उत्तर प्रदेश में रह रहे लोगों का बिजली का बिल माफ़ कर दे।
यह काफी अच्छी बात है कि प्रियंका जी मध्यम और निम्न वर्ग के लोगो के बारे में इतना सोचती हैं, लेकिन क्या यह वर्ग सिर्फ उत्तर प्रदेश में रहता है? राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में इस वर्ग का कोई नहीं? और अगर है तो प्रियंका जी या कांग्रेस के किसी अन्य नेता को उनका कोई ख्याल क्यों नहीं है?
प्रियंका जी को एक चिट्ठी राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी को भी लिखनी चाहिए और उनसे यह कहना चाहिए कि वैक्सीन की वेस्टेज को कम करें, वेंटिलेटर्स का प्रयोग सही तरीके से करें और राजस्थान में रह रहे लोगों का बिजली का बिल भी माफ़ करें।
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