गाजियाबाद के लोनी इलाके में मुस्लिम बुजुर्ग के साथ मारपीट के मामले में यूपी पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए ट्विटर समेत 8 अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया है। भारत में ट्विटर के खिलाफ यह पहला केस दर्ज हुआ है। इससे पहले आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत ट्विटर को कानूनी संरक्षण मिलता रहा है, लेकिन भारत सरकार के नए आई.टी. नियमों का पालन ना करने के कारण यह सुरक्षा समाप्त कर दी गई थी।
ट्विटर पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगा है। कानूनी संरक्षण समाप्त होते ही योगी सरकार ने ट्विटर पर फेक न्यूज़ फैलाने तथा उसके खिलाफ कोई एक्शन ना लेने पर आई.पी.सी. की धारा 153, 153A, 295A, 505, 120B एवं 34 के तहत केस दर्ज किया है।
दरअसल, सोमवार को एक वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रही थी। उस वीडियो में यह दिख रहा था कि एक बुजुर्ग मुसलमान व्यक्ति की कुछ लोगों ने पिटाई की और फिर उसकी दाढ़ी काट दी। मामला गंभीर तब हुआ जब मंगलवार को उसी बुजुर्ग व्यक्ति का एक और वीडियो वायरल हुआ जिसमे उसने ये कहा कि उससे जबरदस्ती जय श्री राम के नारे लगवाए गए और ऐसा ना करने पर उसे 5 लड़को ने पीटा और फिर उसकी दाढ़ी काट दी।
इस वीडियो के इंटरनेट पर वायरल होते ही लोगों में गुस्सा फूट गया। कुछ प्रख्यात पत्रकार, मीडिया हाउस और नेताओं ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कड़ी प्रक्रिया भी दी। राहुल गाँधी से लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्वीट करके इसके खिलाफ आपत्ति जताई। लेकिन जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने इस मामले का संज्ञान लिया तो पता चला कि अब्दुल समद के साथ जिन लोगों ने मारपीट की थी, वह उसके जानने वाले थे। पुलिस ने जिन आरोपियों का नाम जारी किया उसमे कुछ मुसलमान भी शामिल थे।
क्या है पूरा मामला।
गाजियाबाद में जिस मुस्लिम बुजुर्ग की पिटाई हुई है उसका नाम अब्दुल समद बताया जा रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने बुजुर्ग द्वारा किये गए सभी दावों को झूठा करार देते हुए कहा है कि अब्दुल समद ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवाई थी। लेकिन सच तो ये है कि जिन लोगों ने अब्दुल को पीटा, वह उसे जानता था।
गाजियाबाद पुलिस की जांच में यह खुलासा हुआ कि अब्दुल समद 5 जून को बुलंदशहर से बेहटा, लोनी बॉर्डर आया था। वहा से उसे एक अन्य व्यक्ति ने बाइक पर बैठाया और परवेश गुज्जर के घर ले गया। घर पर पहुंचने के बाद, अब्दुल समद को एक कमरे में बंद करके परवेश तथा उसके अन्य मित्र, कल्लू, पोली, आरिफ, आदिल व मुशाहिद ने जमकर पीटा और उसकी वीडियो बना ली। अब्दुल ने मुख्य आरोपी परवेश गुज्जर एवं उसके परिवार के लिए ताबीज़ बनाई थी।
परवेश का मानना था कि अब्दुल ने जो ताबीज़ बनाई थी, उसका असर नहीं हुआ। इस कारण परवेश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर इस कृत्य को अंजाम दिया था।
एफआईआर में किसका नाम शामिल?
एफआईआर में मोहम्मद जुबैर (को फाउंडर, ALT न्यूज़), राना अयूब (पत्रकार), द वायर (न्यूज़ वेबसाइट), सलमान निजामी (कांग्रेस नेता), मसकूर उस्मानी (कांग्रेस नेता), समा मोहम्मद (कांग्रेस प्रवक्ता), सबा नकवी (पत्रकार), ट्विटर इंटरनेशनल और ट्विटर कम्यूनिकेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम शामिल। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो अभी और भी लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ हो सकती है।
राहुल गाँधी को योगी आदित्यनाथ की लताड़।
मामला बेहद गंभीर और धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ था, इसलिए उत्तर प्रदेश पुलिस ने बड़ी तत्परता के साथ इस मामले का संज्ञान लिया। गाजियाबाद पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्ववीट करते हुए मामले की जानकारी दी तथा दोषियों का नाम भी उजागर किया।
पुलिस के ट्वीट के कुछ घंटे बाद राहुल गाँधी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, “मैं ये मानने को तैयार नहीं हूँ कि श्रीराम के सच्चे भक्त ऐसा कर सकते हैं। ऐसी क्रूरता मानवता से कोसों दूर है और समाज व धर्म दोनों के लिए शर्मनाक है।”
राहुल गाँधी के इस ट्वीट पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काफी कड़ी टिप्पणी की। योगी जी ने अपने ट्वीट में लिखा कि, “प्रभु श्री राम की पहली सीख है-“सत्य बोलना” जो आपने कभी जीवन में किया नहीं। शर्म आनी चाहिए कि पुलिस द्वारा सच्चाई बताने के बाद भी आप समाज में जहर फैलाने में लगे हैं। सत्ता के लालच में मानवता को शर्मसार कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की जनता को अपमानित करना, उन्हें बदनाम करना छोड़ दें।”
ट्विटर की बढ़ती मुश्किलें।
समय के साथ, ट्वीटर को लेकर सरकार का रुख और भी सख्त होता जा रहा है। नए आई.टी. नियमों के पालन में देरी के कारण केंद्र सरकार ने ट्विटर से भारतीय आई.टी. एक्ट की धारा 79 के तहत मिला सुरक्षा का अधिकार छीन लिया है। इसके तहत अगर अब कोई भी यूजर ट्विटर पर भड़काऊ या धार्मिक नफरत फैलाने वाला पोस्ट करता है तो इसकी ज़िम्मेदारी ट्विटर को ही लेनी होगी। ऐसे किसी भी पोस्ट के लिए केंद्र या राज्य सरकारें ट्विटर पर केस कर सकती है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को 25 मई तक अनुपालन अधिकारियों की नियुक्ति करनी थी, लेकिन ट्विटर इस प्रक्रिया को लगातार टालता जा रहा था। सरकार ने 5 जून को ट्विटर को एक आखिरी नोटिस दिया था, जिसमे लिखा गया था कि कंपनी को तत्काल प्रभाव से नए आई.टी. नियमों का अनुपालन करना होगा और अगर वह ऐसा करने में असक्षम रहें तो आईटी कानून के तहत मध्यस्थ मंच के नाते मिली सभी छूट उससे वापस ले ली जाएगी।
फिलहाल ट्विटर के पास अब एक ही रास्ता बचा है, और वह है उत्तर प्रदेश पुलिस की जांच प्रक्रिया में हर संभव सहयोग करना। इस बार तो हाई कोर्ट से भी मदद मिल पाना काफी मुश्किल लग रहा है, क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही ट्विटर को नए आई.टी. नियमों का पालन करने के लिए कह रखा है।