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यादें… नहीं रहे फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह

नहीं रहे फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह

एथलेटिक्स में भारत का परचम लहराने वाले फ़र्राट धावक मिल्खा सिंह का 18 जून की रात को निधन हो गया। वह पिछले एक महीने से कोरोना संक्रमण से जूझ रहे थे। शुक्रवार की रात को उन्होंने आखरी सांस ली। मिल्खा जी के जाने के पांच दिन पहले उनकी पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर का भी कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया था।

मिल्खा सिंह का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा था। बाल्यावस्था में माता-पिता को खो देने के बाद भी अपनी मेहनत और लगन से जो मुकाम उन्होंने हासिल किया, वह प्रशंसा योग्य है।

आइये आज हम सब मिल्खा सिंह जी के जीवन से जुड़े कुछ लम्हों को याद करते है:

विभाजन के दौरान हुआ माता-पिता और सात भाई-बहन का क़त्ल-

मिल्खा सिंह जी का जन्म नवंबर 20, 1929 को गोविंदपुरा में हुआ था, यह गांव अब पाकिस्तान में है। उनके 15 भाई-बहन थे। विभाजन के कारण उन्हें काफी कष्ट झेलना पड़ा। भारत – पाकिस्तान विभाजन के 2 दिन बाद मिल्खा जी के गांव में दंगे होने लगे, जिसके कारण उनके पिता ने उन्हें मुल्तान भेजा। मुल्तान में उनके बड़े भाई माखन सिंह तैनात थे। माखन सिंह जब 3 दिन बाद अपनी यूनिट के साथ गांव पहुंचे, तब तक उपद्रवियों ने मिल्खा जी के माता-पिता को मार डाला था। विभाजन में हुए दंगो के कारण मिल्खा जी ने अपने 7 भाई – बहन भी खो दिए थे।

आज़ाद भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले पहले भारतीय थे मिल्खा सिंह-

1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह जी ने भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया था। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम सप्रेन्स को हरकार स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। 1959 में भारत सरकार द्वारा मिल्खा जी को पद्मश्री से नवाजा गया था। मिल्खा कॉमनवेल्थ गेम्स में ट्रैंक ऐंड फील्ड में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनका यह रेकॉर्ड 52 साल तक कायम रहा। हालांकि दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम सप्रेन्स से उनका 1960 रोम ओलिंपिक में फिर से सामना हुआ लेकिन वह इस बार उससे हार गए थे।

इंटरनेशनल एथलीट कॉम्पटिशन में पाकिस्तान के अब्दुल ख़ालिक़ को हराया-

1960 रोम ओलिंपिक में भाग लेने से पहले मिल्खा जी ने पाकिस्तान के प्रमुख धावक अब्दुल ख़ालिक़ को उन्हीं के वतन में हराया था। पाकिस्तान ने इंटरनेशनल एथलीट कॉम्पटिशन के लिए मिल्खा सिंह को न्योता भेजा था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। उस समय तक मिल्खा जी के ज़हन में विभाजन के घाव हरे थे, इसी कारण से उन्होंने पाकिस्तान से आया हुआ न्योता ठुकरा दिया था, लेकिन तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के अनुरोध पर वह पाकिस्तान जाने के लिए मान गए थे।
मिल्खा सिंह और अब्दुल ख़ालिक़ के बीच इस मुकाबले को देखने के लिए लगभग 7000 लोग आये थे। इस ऐतिहासिक मुकाबले में मिल्खा जी ने अब्दुल को हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। उन्होंने महज 21.6 सेकंड में 200 मीटर की दूरी तय करके नया रेकॉर्ड बना दिया था।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि से नवाजा था-

जब पाकिस्तान में इंटरनेशनल एथलीट कॉम्पिटिशन का आयोजन हुआ था तब उस समय फील्ड मार्शल अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। खान की जब मिल्खा सिंह से मुलाकात हुई तब उन्होंने कहा की “आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हे फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजते हैं।” इस मुकाबले के बाद से लोगों ने मिल्खा जी को ‘फ्लाइंग सिख’ बुलाना शुरू कर दिया था।

रोम ओलिंपिक में पीछे मुड़ के देखना पड़ गया महंगा-

जब भी लोग मिल्खा सिंह के जीवन की उपलब्धियों के बारे में बात करते है तब रोम ओलिंपिक में उनके ऐतिहासिक दौड़ को ज़रूर याद किया जाता है। 1960 रोम ओलिंपिक में मिल्खा सिंह भले ही कोई पदक नहीं जीत पाए थे लेकिन विश्व पटल पर उन्होंने एक गहरी छाप छोड़ दी थी।
एक इवेंट के दौरान मिल्खा जी ने कहा था कि हर मुकाबले के दौरान वह एक बार पीछे मुड़ कर जरूर देखते थे, लेकिन उस दिन यह आदत काफी महंगी पड़ गयी। आपको बता दे कि 400 मीटर की इस दौड़ के पहले 250 मीटर तक मिल्खा जी प्रथम स्थान पर भाग रहे थे लेकिन उसके बाद उनकी गति थोड़ी धीमी हो गयी, इस कारण बाकी धावक उनसे आगे निकल गए। इस मुकाबले में मिल्खा जी चौथे स्थान पर रहे लेकिन उनका 45.73 सेकंड का यह रिकॉर्ड अगले 38 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा।

फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह को पराक्रम न्यूज़ की भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

Satyam Tiwari
Satyam Tiwari is the Founder and Editor-in-Chief of Parakram News. He is as unbiased as any other popular journalist out there. Satyam has started this media portal to bring a necessary change in the perception of people living in this beautiful country, 'India'.

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