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भाजपा के साथ कभी प्यार तो कभी तकरार वाला रिश्ता रखते थे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह।

हिन्दू ह्रदय सम्राट कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का भाजपा के साथ एक अजीब सा ही रिश्ता था। एक समय उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा का परचम लहराने वाले कल्याण सिंह ही प्रदेश से भाजपा के खात्मे का कारण बने थे। 1991 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी, उस समय कल्याण सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन उनका कार्यकाल सिर्फ 533 दिन तक का ही रहा। उन 533 दिनों में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने वह कर दिखाया जिसने भाजपा की हिंदुत्ववादी छवि को और मजबूत कर दिया। यह वही समय था जब केंद्र में पी. वी. नरसिंह राव की सरकार थी और राज्य में बाबरी मस्जिद का विध्वंश हुआ था।

आज हम कल्याण सिंह जी के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पलों को इस लेख के द्वारा आपके समक्ष रखेंगे:

अलीगढ़ की अतरौली सीट और कल्याण सिंह।

कल्याण जी का जन्म जनवरी 6, 1932 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। उन्होंने अपने गृह क्षेत्र अलीगढ़ के उतरौली सीट से पहली बार 1962 में चुनाव लड़ा था। उस समय वे जन संघ में थे, और उनकी उम्र सिर्फ 30 वर्ष थी। वह पहली बार चुनाव हार गए थे लेकिन 5 वर्ष बाद, 1967 में हुए विधान सभा चुनाव में उन्होंने अपनी पहली जीत दर्ज की। जिसके बाद वह 1980 तक लगातार चुनाव जीतते रहे। 1980 में कांग्रेस के अनवर खां ने उन्हें उतरौली सीट से हराया था लेकिन 1985 में वह फिर से जीत गए और 2004 तक कल्याण सिंह (Kalyan Singh) उसी सीट से विधायक चुने जाते रहे।

कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का राजनैतिक उदय।

सिंह साहब लोध समाज से थे। लोध, क्षत्रिय हिंदू होते है और उत्तर प्रदेश में यह जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अंतर्गत आती है। यहाँ पर जाति की बात इसलिए हो रही है क्यूंकि जब 1991 में कल्याण सिंह जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब उस वक्त मंडल और कमंडल राजनीति की चर्चा अपने उफ़ान पर थी। ऐसे में सभी राजनैतिक दलों ने यह भांप लिया था कि ‘हिंदी बेल्ट’ में पिछड़ी तथा अन्य पिछड़ी जाति के मत बहुत मायने रखते है। वह इसलिए क्योंकि वह बहुसंख्यक थे।

ऐसे में भाजपा ने कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के ऊपर दाव लगाया क्योंकि वह मंडल यानी पिछड़ी जाति से आते थे। नतीजा यह हुआ कि 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। हालांकि यह सरकार सिर्फ 533 दिन तक ही चली थी।

बाबरी मस्जिद विध्वंश और त्यागपत्र।

‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ के नारे से लेकर ‘अयोध्या तो बस झांकी है- काशी, मथुरा बाकी है’ के नारे तक का सफर तय करने के लिए कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने अपनी कुर्सी तक दांव पर लगा दी थी। अकसर जब राम लला के मंदिर की बात आती है तो इस सपने को साकार करने का बहुत बड़ा श्रेय लोग अडवाणी जी, वाजपेयी जी, जोशी जी तथा मोदी जी को दे देते है। लेकिन सच तो ये है कि बिना कल्याण सिंह की सहायता के यह असंभव था। वह अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के ‘अनसंग हीरो’ है। अगर उस समय कल्याण सिंह (Kalyan Singh) सत्ता के लोभ में फंस गए होते तो शायद लाखों राम भक्तों का यह सपना साकार ना हो पता।

दिसंबर 6, 1992 को जब बाबरी मस्जिद गिराई गई, तब कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने इसकी नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए मुख्य्मंत्री पद छोड़ने हेतु त्यागपत्र दे दिया था। हालाँकि इसके कुछ ही देर बाद प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

बसपा और भाजपा का गठजोड़।

बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति हर घड़ी एक नया मोड़ ले रही थी। प्रदेश में हर दिन राजनैतिक समीकरण बदल रहा था। कभी राष्ट्रपति शासन तो कभी मिली-जुली सरकार बन रही थी। फिर एक ऐसा समय आया, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी, बसपा और भाजपा का गठबंधन।

भाजपा ने बसपा का साथ 1995 में पहली बार दिया था, हालांकि भाजपा ने 137 दिन बाद समर्थन वापस भी ले लिया था। जिसके कारण सरकार गिर गयी थी। इस प्रकरण के बाद डेढ़ साल तक राष्ट्रपति शासन प्रदेश में लागू रहा। 1996 में प्रदेश में फिर से चुनाव हुआ जिसमें भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 425 सीटों की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी ने 173 सीटें हासिल की, सपा को 108, बसपा को 66 तो कांग्रेस को सिर्फ 33 ही सीटें मिलीं थी।

बसपा और भाजपा का दूसरी बार गठजोड़ और कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का शासनकाल‌।

यूपी में तेरहवीं विधानसभा तो 17 अक्टूबर 1996 में ही शुरू हो गयी थी, लेकिन किसी भी पार्टी के गठबंधन ना करने के कारण राष्ट्रपति शासन लगा रहा। एक बार फिर प्रदेश ने भाजपा और बसपा का गठजोड़ देखा। मार्च 2, 1997 को भाजपा का समर्थन पाकर एक बार फिर मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी, लेकिन इस बार समीकरण पूरी तरह बदल चूका था। अब भाजपा और बसपा 6-6 महीने में मुख्य्मंत्री बदलने का करार किया था।

पहले 6 महीने मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी, फिर कल्याण सिंह (Kalyan Singh) की बारी आयी। उन्होंने आते के साथ ही, एक-एक करके मायावती द्वारा लिए गए निर्णय को पलटना शुरू कर दिया। अंत में वही हुआ जो सरकार बनते ही लोगों को अनुमान लग गया था। बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रपति शासन की तलवार फिर से प्रदेश के ऊपर लटकने लगी। उस समय के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह (Kalyan Singh) को 2 दिन में बहुमत साबित करने को कहा था।

इस गठबंधन ने विधानसभा अध्यक्ष की ताकत का परिचय दुनिया से करवाया- दल-बदलुओं पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अंतिम माना जाता है, और उस समय विधानसभा अध्यक्ष भाजपा से चुना गया था। प्रदेश में जोड़-तोड़ का खेल शरू हो गया, और कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने यह खेल बखूबी खेला। उन्होंने 222 विधायकों का समर्थन दिखाकर अपनी बहुमत साबित कर दी, और मुख्यमंत्री पद पर काबिज़ रहे।

भाजपा ने जब कल्याण सिंह को पार्टी से बर्खास्त कर दिया।

1999 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) को भाजपा ने पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। वह उस समय पार्टी से बगावत करने लगे थे। लोग ऐसा कहते है कि ये बगावती बिगुल उन्होंने कुसुम राय के कारण फुंका था। कुसुम राय, कल्याण सिंह की अच्छी दोस्त थीं और लखनऊ के राजाजीपुरम से चुनाव जीत कर आई थी। कुसुम राय के पास कोई बहुत बड़ा पोर्टफोलियो तो नहीं था, लेकिन वह बड़े से बड़ा काम चुटकियों में करवा दिया करती थी।

साथी नेता कल्याण जी के इस बर्ताव से परेशान थे, और आला कमान से इस बात की शिकायतें भी करने लगे थे। यह वो समय था जब कल्याण जी के संबंध अटल जी से भी खराब होने लगे थे। अटल जी चाहते थे कि कल्याण सिंह केंद्र में आ जाए पर वह उनकी बात नहीं माने और इसी कारणवश उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया था। हालांकि वे बाद में फिर से भाजपा में आ गए थे‌ और मरते दम तक भाजपा के ही होकर रह गए।

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Satyam Tiwari
Satyam Tiwari is the Founder and Editor-in-Chief of Parakram News. He is as unbiased as any other popular journalist out there. Satyam has started this media portal to bring a necessary change in the perception of people living in this beautiful country, 'India'.

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