क्या स्वच्छ भारत बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की है?
क्या केंद्र या फिर राज्य सरकारें आम नागरिकों के सहयोग के बिना भारत को स्वच्छ बना सकती है?
आज ये दो सवाल हमें अपने आप से पूछना पड़ेगा।
हाल ही में एक चौका देने वाला खुलासा हुआ है, भारतीय रेलवे ने यह बताया कि गुटखा थूकने के बाद पड़ जाने वाले दागों को छुटाने के लिए सालाना 1200 करोड़ रुपयों का खर्च आता है। इतना ही नहीं, इन दागों को छुटाने के लिए पानी का भी अच्छा खासा इस्तेमाल किया जाता है। ये तब हो रहा है जब देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है, और लोगों को स्वछता का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
क्या फर्क पड़ता है?: यह रवैया छोड़ना होगा
हममें से कुछ लोग हर छोटी-बड़ी बातों पर एक वाक्य का प्रयोग जरूर करते है, और वो है ‘क्या फर्क पड़ता है।’ इस एक वाक्य ने हम सब को लापरवाह बना दिया है। हम उन चीजों पर तनिक भी रहम नहीं करते जिन्हें हमने अपने पैसों से ना खरीदा हो या जिसके खराब हो जाने से हमारी जेब पर सीधा असर ना पड़े। सरकारी संपत्ति का उपयोग करते समय अधिकतम लोगों का बरताव कुछ ऐसा ही रहता है। ट्रेनों और बसों में थूकने और गन्दगी फैलाने वाले लोग भी ‘क्या ही फर्क पड़ता है’ वाली मानसिकता से ग्रसित है। वह अपने घर में कूड़े को तो कूड़ेदान में ही फेंकते हैं, लेकिन जब कहीं सरकारी संपत्ति का प्रयोग कर रहे होते है तब सामने रखे कूड़ेदान को भी अनदेखा कर जाते है।
क्या है भारतीय रेलवे के आगे का प्लान?
कहने को तो भारतीय रेलवे थूकने और गंदगी फैलाने पर 500 रूपए जुर्माना (fine) लेता है, लेकिन आज तक हमने ना तो किसी को नियमों का उल्लंघन करते समय डरते देखा है और ना ही किसी को पकड़े जाते देखा है। इससे एक बात तो साफ है कि सुस्त रेलवे के नियम उल्लंघन से लोगों को डर तो बिकुल भी नहीं लगता।
हालंकि पश्चिम, उत्तर और मध्य रेलवे जोन में थूकने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए जगह-जगह स्पिटून वेंडिंग मशीनों (Spittoon Vending Machine) को लगाने का निर्णय लिया है। इस मशीन से अब यात्री 5 से 10 रुपये में एक स्पिटून पाउच खरीद सकेंगे। इन बायोडिग्रेडेबल पाउच को आप अपनी जेब में रख सकते है और अपनी आवश्यकता के अनुसार आप इसे 10 से 15 बार तक थूकने के लिए प्रयोग कर सकते है।
भारतीय रेलवे ने स्पिटून वेंडिंग मशीनों को कुछ जगहों पर लगवाना शुरू कर दिया है, उम्मीद यही जताई जा रही है कि इससे लोगों में जागरूकता बढ़ेगी।