Kashmiri Pandit Exodus: आजाद भारत में गज़वा-ए-हिंद की पहली कोशिश। Opinions इतिहास by Satyam Tiwari - January 19, 2022January 23, 2022 32 साल पहले आज के ही दिन (जनवरी, 19) कश्मीरी पंडितों के समक्ष तीन विकल्प रखे गए थे; ‘रालिव’, ‘गालिव’ या ‘चालिव’ अर्थात ‘पंथ/धर्म परिवर्तन’, ‘मौत’ या ‘भाग जाना’। अपनों की सलामती के लिए अधिकतर कश्मीरी पंडितों ने ‘गालिव’ विकल्प चुनना ज्यादा सही समझा। 19 जनवरी, 1990 को 60 हजार से अधिक कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी और एक पल में वह अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। साल 1990 की शुरुआत में घाटी में लगभग 5 लाख कश्मीरी पंडित रहते थे, लेकिन साल के अंत तक सिर्फ 25 हजार ही बचे रह गए। उस दौरान जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस व नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन की सरकार थी। अलगाववादियों के इशारे पर नाचने वाली यह सरकार हिंदू अल्पसंख्यकों के नरसंहार को हाथ पर हाथ धरे देखती रह गई। क्या है गज़वा-ए-हिंद?(What is Ghazwa-e-Hind?) इस्लाम पंथ के सिद्धांतों के अनुसार दुनिया दो भागों में विभाजित है:- ‘दारुल इस्लाम ‘ और ‘दारुल हर्ब ‘। दारुल इस्लाम– वह सभी देश, जहां मुस्लिम रहते हैं व राज/शासन भी उन्हीं का है।दारुल हर्ब– वह सभी देश, जहां मुस्लिम तो रहते हैं, लेकिन राज/शासन गैर-मुसलमानों का है। इस्लाम के इन सिद्धांतों के अनुसार फिलहाल भारत एक ‘दारुल हर्ब’ देश है, जिसे ‘दारुल इस्लाम’ बनाना ही ‘गज़वा-ए-हिंद’ कहलाएगा। आसान शब्दों में कहा जाए तो ‘गजवा-ए-हिन्द’ का मतलब है काफिरों को जीतने के लिए किया जाने वाला युद्ध। ‘गज़वा-ए-हिंद’ का ज़िक्र कुरान में तो नहीं मिलता लेकिन ‘हदीस’ में इसका काफी ज़िक्र देखने और सुनने को मिलता है। ‘हदीस’ पैगंबर मोहम्मद की बातों का संग्रहण है, जिसे उनकी मृत्यु के 200 साल बाद लिखा गया था। इस्लामी भविष्यवाणाी के अनुसार सीरिया से गज़वा-ए-हिंद की लड़ाई शुरू होगी। काले झंडे के साथ फौज खु़रासान (मध्य एशिया ऐतिहासिक क्षेत्र, जिसमें आधुनिक अफ़्गानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और पूर्वी ईरान के भाग शामिल है) से आएगी और भारत में जिहाद करके उसे एक इस्लामी मुल्क में तब्दील किया जाएगा। कश्मीरी पंडित त्रासदी और गज़वा-ए-हिंद (Ghazwa-e-Hind) की कल्पना में सामानता गज़वा-ए-हिंद (Ghazwa-e-Hind) में काफिरों की कोई जगह नहीं है; कश्मीर में भी काफिरों के समक्ष तीन विकल्प रखे गए थे, ‘पंथ/धर्म परिवर्तन’, ‘मौत’ या ‘भाग जाना’। इतना ही नहीं 1990 के समय कश्मीर में ‘असि गछि पाकिस्तान बटव रोअस त बटनेव सान’ के नारे लगते थे। इसका अर्थ है ‘यहां बनेगा पाकिस्तान, हिंदुओं के बगैर, लेकिन उनकी औरतों के साथ।’ इससे आपको इस बात का तो अंदाजा लग ही गया होगा कि मुगल शासन के दौरान हिंदू राजा-महाराजाओं के हारने के बाद महिलाएं ‘जौहर’ क्यों कर लिया करती थी। इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार मुसलमानों का यह कर्तव्य है कि वो यह सुनिश्चित करें कि पूरी दुनिया में बुतपरस्ती (मूर्तिपूजा) बंद हो। अगर बुतपरस्ती नहीं बंद हुई, तो इस्लाम का राज्य कायम नहीं हो पाएगा; कश्मीर में भी हिंदू मंदिरों को जलाया व ध्वस्त कर दिया गया था ताकि बुतपरस्ती बंद हो सके। मुगल शासन के दौरान भी बाबर, अकबर, औरंगजेब और महमूद ग़ज़नवी जैसे क्रुर आक्रांताओं ने सबसे पहला निशाना मंदिरों को ही बनाया था। बहुत से मुगल आक्रांताओं के नाम के अंत में ‘गाजी (Ghazi)’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह शब्द उन आक्रांताओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिन्होंने हिंदुओं का नरसंहार करके इस्लाम का राज्य कायम करने की भरपूर कोशिश की थी। संभवतः कश्मीरी पंडित त्रासदी को आजाद भारत में ‘गज़वा-ए-हिंद’ की पहली कोशिश कहना गलत नहीं होगा। इस विषय पर आगे के लेखों में और भी जानकारी साझा करने की कोशिश रहेगी। Support Parakram News