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UP Election 2022: जातीय समीकरण क्या कहता है? जानिये किसकी बन सकती है सरकार ?

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 का जातीय समीकरण

वैसे तो चुनाव के दौरान बहुत बड़ी-बड़ी बातें कही जाती हैं कि लोग विकास, रोजगार एवं उम्मीदवार की शिक्षा के आधार पर वोट करते है, लेकिन यह पूर्णतः सच नहीं है। आज भी बड़े पैमाने पर लोग जाति एवं पंथ के अनुसार अपनी सरकार व उम्मीदवार को चुनते है। अगर हम बात करें उत्तर प्रदेश की तो यहां पर कई राजनैतिक दल ऐसे भी है, जो सिर्फ एक जाति व संप्रदाय के ही बनकर रह गए है। 

इस लेख में हम आपको पिछले कुछ समय से चले आ रहे वोटिंग पैटर्न के बारे में बताएंगे। इससे आपको उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के रुझान समझने में आसानी होगी। 

मुस्लिम (18%)

पिछले कुछ चुनावों में यह देखने को मिला है कि मुसलमान एकमत होकर समाजवादी पार्टी को वोट दे रहें हैं। पहले तक यह लोग कांग्रेस पार्टी के समर्थक हुआ करते थे लेकिन समय के साथ-साथ कांग्रेस की पकड़ इस वर्ग पर ढीली होती गई, जिसका भरपूर फायदा सपा को मिला। हालांकि उज्ज्वला व पीएम आवास योजना लाने और तीन तलाक जैसी कुप्रथा हटाने के कारण मुसलमान समुदाय के ही महिला वर्ग का ठीक-ठाक समर्थन भाजपा को भी मिलने लगा है। लेकिन यह सपा के लिए कोई परेशानी की बात नहीं है। सपा का असली सर दर्द असदुद्दीन ओवैसी के आने के कारण शुरू हुआ है। युवा मुसलमानों पर ओवैसी की अच्छी खासी पकड़ है। ओवैसी के आग उगलते भाषण बड़ी ही आसानी से युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं, जिसका सबसे बड़ा नुकसान सपा को ही होगा। 

उत्तर प्रदेश के वह जिले जहां मुसलमानों की संख्या अधिक है: रामपुर (50%), मुरादाबाद (47%), बिजनौर (43%), मुज्जफर नगर (41%), सहारनपुर (41%), अमरोहा (40%), बलरामपुर (37%), बरेली (34%), मेरठ (34%), श्रावस्ती (30%)

यादव (9-10%)

1992 से पहले यादव समाज कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया करता था लेकिन समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने पूरा पासा ही पलट दिया। अपने पिता की तरह ही अखिलेश यादव की पकड़ भी इस समाज पर काफी मजबूत है। अन्य पिछड़ा वर्ग की सबसे बड़ी आबादी वाला यह समाज सपा का मूल समर्थक माना जाता है। उत्तर प्रदेश में यादवों की संख्या लगभग 9 से 10% की है। यही कारण है कि सभी राजनैतिक दल यादव समुदाय को अपनी ओर करने में लगे रहते हैं। हालांकि अखिलेश यादव के होते हुए यह काम लगभग नामुमकिन सा है।

ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य 

एक वक्त तक उत्तर प्रदेश की राजनीति में चीर प्रतिद्वंदी माने जाने वाले क्षत्रिय और ब्राह्मण समुदाय अब भाजपा के पक्ष में है। 90 के दशक से पहले ब्राह्मणों का वोट कांग्रेस पार्टी ले जाया करती थी, वहीं क्षत्रिय वोट बट जाता था। कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 11 बार ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाया लेकिन मंडल-कमंडल की राजनीति और राम मंदिर आंदोलन के बाद ब्राह्मण और क्षत्रिय एकमत होकर भाजपा को वोट देने लगे। प्रदेश में ब्राह्मण जनसंख्या 11% है, वहीं छत्रिय आबादी प्रदेश की जनसंख्या में 7% की हिस्सेदारी रखती है। वैसे तो एक सन्यासी की कोई जाति नहीं होती लेकिन राजनीति में बिना जाति के कोई काम नहीं किया जा सकता। सन्यास लेने से पहले योगी आदित्यनाथ का नाम अजय सिंह बिष्ट था, अर्थात वह एक क्षत्रिय थे। उनके ऊपर कई बार क्षत्रियों का पक्ष लेने का लांछन लगा, विपक्षी पार्टियों ने ब्राह्मण वोट अपनी तरफ खींचने की कोशिश की है। 

प्रदेश में अफवाहों का बाजार गर्म है कि ब्राह्मण भाजपा से खफा है और वह सपा या बसपा को वोट दे सकते हैं। हालांकि यह सच नहीं है क्योंकि विपक्ष के पास कोई भी बड़ा ब्राह्मण चेहरा नहीं है जिससे वह उन्हें अपनी तरफ खींच सकें। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के अन्य सामान्य वर्ग (कायस्थ, भुमिहार, आदि) का रुझान भी भाजपा की ओर ही है। 

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में 3.5% की आबादी रखने वाला वैश्य समुदाय हमेशा से ही भाजपा का समर्थक रहा है। असल में भाजपा को उत्तर प्रदेश में हमेशा से ही ‘बनियों की पार्टी’ के नाम से जाना जाता रहा है। हर बार की तरह इस बार भी वैश्य समाज भाजपा को ही वोट देगा क्योंकि विपक्ष के पास कोई बड़ा नेता नहीं है।

कोइरी (5.5%)

उत्तर प्रदेश में कोइरी जनसंख्या लगभग 5.5% है। एक समय था जब कोइरी समुदाय का अधिकांश वोट बसपा ले जाया करती थी। हालांकि अब यह वोट भाजपा और सपा के बीच बट जाता है। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या इस समुदाय पर काफी अच्छी पकड़ है। इसके अलावा जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रह रहे कोइरी समुदाय पर अच्छी पकड़ रखते है। 

लोध (4%)

जब लोध समाज की बात आती है तो सबसे पहला नाम जो सामने आता है, वह है ‘कल्याण सिंह।’ वही कल्याण सिंह, जिन्होंने राम मंदिर के लिए अपनी कुर्सी भी त्याग दी थी। अभी हाल ही में कल्याण सिंह के देहांत के उपरांत भाजपा ने जिस तरीके से उनका आदर व सम्मान किया, उससे पूरा लोध समाज भाव-विभोर हो गया है। 4% की आबादी रखने वाला यह समाज काफी हद तक भाजपा के पक्ष में ही वोट करेगा।

श्री कल्याण सिंह जी के बारे में अधिक जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: भाजपा के साथ कभी प्यार तो कभी तकरार वाला रिश्ता रखते थे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य्मंत्री कल्याण सिंह

कुर्मी (5%)

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में 5% की हिस्सेदारी रखने वाला कुर्मी समाज अनुप्रिया पटेल की पार्टी, अपना दल का समर्थन करता है। फिलहाल अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं और हर बार की तरह इस बार भी अपना दल, भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। मिर्जापुर, सोनभद्र, उन्नाव और बांदा के अलावा कौशांबी में भी कुर्मी समाज की अच्छी खासी आबादी है। 2017 और 2019 की तरह ही इस बार भी कुर्मी समाज अपना दल एवं भाजपा के गठबंधन को ही वोट करने वाला है।

निषाद/ केवट/ मल्लाह (4%)

नदियों के निकट गांवों में रहने वाला यह समुदाय उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में 4% की भागीदारी रखता है। रामायण में भी इस समुदाय का वर्णन है। भगवान श्री राम जब वनवास के लिए जा रहे थे तब केवट ने ही उन्हें अपनी नाव में बैठा कर गंगा पार कराया था। संजय निषाद मल्लाह समुदाय के बड़े नेता माने जाते है, और इस बार वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। अनुमान यही लगाया जा रहा है कि मल्लाह समुदाय का अधिकतम वोट एनडीए गठबंधन को ही जाएगा।

राजभर (3.8%)

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में लगभग 3.8% की आबादी रखने वाला राजभर समाज महाराजा सुहेलदेव को अपना आदर्श मानता है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओपी राजभर इस समाज पर अच्छी पकड़ रखते है। 2017 में ओपी राजभर ने भाजपा के साथ गठबंधन कर 8 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से 4 सीटों पर उन्हें जीत मिली थी। लेकिन बाद में वह भाजपा से अलग हो गए। इस बार ओपी राजभर समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले है।

जाट (2%)

इस वक्त अगर सबसे ज्यादा नजरें किसी समुदाय पर टिकी है, तो वह जाट समुदाय है। भाजपा द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के कारण जाट समुदाय के कुछ समूह सत्ताधारी पार्टी से काफी नाराज हैं। जाट समुदाय चौधरी चरण सिंह व उनके परिवार का कट्टर समर्थक माना जाता था लेकिन 2013 मुजफ्फर नगर दंगों ने पूरे समीकरण ही बदल दिए। 2013 से पहले मुस्लिम और जाट आरएलडी और सपा को सपोर्ट किया करते थे, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट समुदाय पूरी तरह से बीजेपी के समर्थन में आ गया। 2019 लोकसभा चुनाव में जाट समुदाय के 90% से अधिक वोट भाजपा के पक्ष में पड़े थे। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में जाटों की आबादी भले ही 2% हो लेकिन पश्चिमी यूपी में 20% तक का वोट शेयर होने के कारण यह समुदाय हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है।

Parakram’s Prediction for UP Assembly Election 2022 (हमारा अनुमान)

S.No. Party Seats Vote Percentage
1 BJP+ 280-290 41-43%
2 SP+ 95-105 28-30%
3 BSP 6-11 16-18%
4 INC 1-6 4-6%
5 Others 2-5 8-10%
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Satyam Tiwari
Satyam Tiwari is the Founder and Editor-in-Chief of Parakram News. He is as unbiased as any other popular journalist out there. Satyam has started this media portal to bring a necessary change in the perception of people living in this beautiful country, 'India'.
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