हिंदी फिल्म इंडस्ट्री यानी बॉलीवुड। वही बाॅलीवुड जिसके दिग्गज कलाकार अक्सर आपको ज्ञान कि बातें करते दिखाई दे देंगे। ये अभिनेता राजनीति से लेकर रंगभेद तक, देश-दुनियां में हो रही हर छोटी-बड़ी घटना पर बड़ी प्रखरता से अपना पक्ष रखते हैं। कई बार इनके वक्तव्य सुनकर ऐसा लगता है मानो इनसे बड़ा ज्ञानी आज-तक दुनिया में पैदा ही नहीं हुआ।
हालांकि आप अगर बाॅलीवुड वालों की ‘कथनी’ और ‘करनी’ को थोड़ा करीब से देखेंगे तो आपको इसमें ‘ज़मीन’ और ‘आसमान’ जितना अंतर दिखाई देगा।
आज हम अपनी कलम से आपके लिए बॉलीवुड की तीन फिल्मों का विश्लेषण करेंगे। यह विश्लेषण बॉलीवुड की रंगभेद वाली प्रवृत्ति को आपके समक्ष उजागर करेगा।
ये तीनों फिल्में कुछ इस प्रकार हैं:
- शाबाश मिट्ठू (क्रिकेटर मिताली राज पर बनी बायोपिक)
- 83 (क्रिकेटर कपिल देव पर बनी बायोपिक)
- साइना (बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल पर बनी बायोपिक)
शाबाश मिट्ठू
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान ‘मिताली राज’ की बायोपिक ‘शाबाश मिट्ठू’ 15 जुलाई को रिलीज होने वाली है। इस फिल्म में तापसी पन्नू मुख्य किरदार निभाते दिखेंगी।
‘जब आप किसी बायोपिक के लिए एक कलाकार की कास्टिंग करते हैं, तो सबसे बड़ी प्राथमिकता यही होती है कि मुख्य कलाकार का रंग-रूप उस व्यक्ति से मिलता-जुलता हो जिसके ऊपर यह फिल्म बनने वाली है।’ हालांकि ये एक आम बात है, लेकिन बाॅलीवुड में ऐसा नहीं चलता। यहां सिर्फ गोरी चमड़ी वाले कलाकार को ही प्राथमिकता मिलती है।
रंगभेद के खिलाफ प्रखरता से बोलने वाला बाॅलीवुड अक्सर बायोपिक बनाते वक्त अपने दोहरे चरित्र का प्रदर्शन कर ही देता है। मिताली का रंग तापसी से थोड़ा डार्क है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वह किसी भी प्रकार से उनसे कम सुंदर हैं। इस बात को विपरीत क्रम (vice-versa) से भी देखा जा सकता है। लेकिन ये बात बाॅलीवुड के कास्टिंग डायरेक्टर्स को आजतक समझ नहीं आई।
बाॅलीवुड में आपको बड़ी मुश्किल से ही कोई सांवले रंग वाला ‘मुख्य किरदार’ मिलेगा। अगर कोई अभिनेता सांवला होगा भी, तो अंततः उसे मेकअप कर के गोरा कर ही दिया जाएगा। हां!! लेकिन साईड रोल में आपको बहुत से कलाकार मिल जाएंगे जो मुख्य किरदार के अपेक्षा कम गोरे होंगे। ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि सबका ध्यान लगातार मुख्य किरदार की ओर आकर्षित रहे।
83 और साइना
’83’ और ‘साइना’ दो अन्य ऐसी बायोपिक हैं, जहां आपको बाॅलीवुड में रंगभेद बड़ी आसानी से देखने को मिलेगा। जहां एक तरफ ’83’ में रणवीर सिंह ने वर्ल्ड कप विजेता कप्तान कपिल देव की भूमिका निभाई थी। वहीं दूसरी तरफ ‘साइना’ में परिणीति चोपड़ा ने बैडमिंटन स्टार साइना नेहवाल की भूमिका निभाई थी।
अगर आप इन दोनों बायोपिक को गौर से देखेंगे तो आपको पता लगेगा कि मुख्य किरदारों को सांवला दिखाने के लिए मेकअप का प्रयोग किया गया है।
आप विडंबना देखिए, अधिकांश फिल्मों में इन अभिनेताओं को ज़रूरत से ज़्यादा गोरा दिखाने के लिए मेकअप किया जाता है, लेकिन इस बायोपिक में सब विपरीत हो गया। क्या बाॅलीवुड को कोई सांवला कलाकार मिल नहीं पाया? या ढूंढ़ने की कोशिश ही नहीं की गई?
खैर! इसका दोषी सिर्फ बाॅलीवुड ही नहीं, हम और आप जैसे दर्शक भी हैं। हम लोगों ने आज तक कभी यह मुद्दा उठाया ही नहीं। उठाना तो दूर, कई लोग अपनी सांवली चमड़ी को सफेद करने के लिए प्रचार देखकर क्रीम भी खरीद लेते हैं। बड़ी बात तो ये है कि इन क्रीमों के ब्रांड एंबेसडर भी रंगभेद पर ज्ञान देने वाले बाॅलीवुड के बड़े-बड़े अभिनेता ही हैं।
कहीं-न-कहीं हमारे दिमाग में यह बात घर कर गई है कि गोरी चमड़ी वाला व्यक्ति, सांवली चमड़ी वाले के अपेक्षा ज्यादा सुंदर एवं उच्च है। यही कारण है कि हम अपने आंखों के सामने हो रहे रंगभेद को भी नहीं देख पा रहे हैं। एक बेहतर समाज के लिए हमें यह मानसिकता बदलनी पड़ेगी।