Supreme court imposes Rs 50,000 fine on IIT-Bombay graduate for PIL seeking Manmohan-Musharraf Formula to resolve Kashmir Conflict: कश्मीर मुद्दे पर PIL फाइल करना आईआईटी मुंबई के छात्रों को काफी महंगा पड़ गया। प्रभाकर वेंकटेश देशपांडे (Prabhakar Venkatesh Deshpande) ने एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर मुद्दे (Kashmir Conflict) मुद्दे का समाधान मनमोहन-मुशर्रफ फाॅर्मूले (Manmohan-Musharraf Formula) से किया जाना चाहिए। इस मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने प्रभाकर वेंकटेश के ऊपर ₹50,000 का जुर्माना लगाया।
क्या है मनमोहन-मुशर्रफ फाॅर्मूले (Manmohan-Musharraf Formula)?
सन 2006 में पाकिस्तान के परवेज़ मुशर्रफ़ और उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच कश्मीर मुद्दे को लेकर काफी बैठकें हुई थी। इस दौरान परवेज़ मुशर्रफ़ ने एक प्रस्ताव दिया था, जिसके 4 मुख्य बिंदु थे।
वो 4 मुख्य बिंदु कुछ इस प्रकार थे-
- सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा व कश्मीर के लोग LOC के आर-पार जा सकेंगे।
- चरणबद्ध तरीके से दोनों देश अपनी-अपनी सेनाएं पीछे करेंगे।
- कश्मीर को ऑटोनॉमी (Autonomy) प्रदान की जाएगी।
- भारत, पाकिस्तान व कश्मीर तीनों मिलकर एक मसौदा तैयार करेंगे।
आपको बता दें कि भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी परवेज़ मुशर्रफ़ के इस प्रस्ताव को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया था।
PIL की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
इस मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच कर रही थी। सुनवाई के दौरान बेंच ने पहले ही याचिकाकर्ता को आगाह कर दिया था कि इस मुद्दे की सुनवाई तो होगी लेकिन जुर्माना भी लगाया जाएगा।
याचिकाकर्ता प्रभाकर वेंकटेश देशपांडे की तरफ से PIL पेश करते हुए वकील अरुप बनर्जी ने कहा कि हम पिछले 70 वर्षों से पाकिस्तान के साथ कश्मीर मुद्दे पर ढ़ाई युद्ध (Two and a half war) लड़ चुके हैं, लेकिन आज तक इसका कोई हल नहीं निकला। इसलिए याचिकाकर्ता मनमोहन-मुशर्रफ फाॅर्मूले (Manmohan-Musharraf Formula) के तहत कुछ सुझाव देना चाहता है। इससे कश्मीर का मुद्दा हल हो सकता है।
बेंच ने कुछ देर इस मामले की सुनवाई करने के बाद याचिकाकर्ता के ऊपर ₹50000 का जुर्माना लगाया। भैंस का कहना था कि न्यायालय का कार्य नीति (Policy) के क्षेत्र में प्रवेश करना नहीं है। इसके अलावा शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यह याचिका जनहित में कम और प्रचार हित (Publicity Interest rather Public Interest) में ज्यादा लगती है।