32 साल पहले आज के ही दिन (जनवरी, 19) कश्मीरी पंडितों के समक्ष तीन विकल्प रखे गए थे; 'रालिव', 'गालिव' या 'चालिव' अर्थात 'पंथ/धर्म परिवर्तन', 'मौत' या 'भाग जाना'। अपनों की सलामती के लिए अधिकतर कश्मीरी पंडितों ने 'गालिव' विकल्प चुनना ज्यादा सही समझा। 19 जनवरी, 1990 को 60 हजार से अधिक कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी और एक पल में वह अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। साल 1990 की शुरुआत में घाटी में लगभग 5 लाख कश्मीरी पंडित रहते थे, लेकिन साल के अंत तक सिर्फ 25 हजार ही बचे रह गए। उस दौरान जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस व नेशनल कॉन्फ्रेंस के गठबंधन की सरकार थी। अलगाववादियों के इशारे पर नाचने वाली यह सरकार हिंदू अल्पसंख्यकों के नरसंहार
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